Friday , 19 April 2024

14 दिन के बाद भी परिजनों को नसीब नहीं हुई अपने बेटे की लाश!

न्यूज़ टैंक्स | लखनऊ

सौरभ पांडेय की फाइल फोटो

किसे पता था कि घर का इकलौता चिराग और अपने मां बाप की लाठी का सहारा इतना जल्दी छोड़कर चला जाएगा। जी हां लखनऊ के रहने वाले सौरभ पांडेय (Saurabh Pandey) मर्चेंट नेवी (Marchent Navy) में बतौर ऑइलर के पद पर कार्यरत थे। जिनका 20 जुलाई को मलेशिया में मौत हो गई थी। वहीं, परिजन पिछले 14 दिनों से परेशान हैं कि उनके लाल की बॉडी उनके हवाले कर दी जाय, लेकिन सरकारी लचर व्यवस्था की वज़ह से बॉडी अभी तक नसीब नही हो सकी है।

मृतक सौरभ के परिजन जहाजरानी मंत्रालय से लेकर दूतावास तक अर्ज़ी लगा चुके हैं, लेकिन सुनवाई के नाम पर उनके साथ सिर्फ खिलवाड़… जब हमनें इस मामले में सौरभ की मम्मी विनीता पांडेय से बात की तो वो भावुक हो गईं, उन्होंने कहा कि वो सीएम से लेकर पीएम तक गुहार लगा चुकी हूँ, लेकिन अभी तक अपने कलेजे के टुकड़े का अंतिम संस्कार नहीं कर पाई हूँ। आगे बात करते हुए विनीता के आंखों में आसूं आ गए, उन्होंने कहा सौरभ 28 दिसम्बर 2019 को लखनऊ से निकले थे और 11 जनवरी 2020 को जहाज़ पर चढ़े थे। वह मुंबई स्तिथ ओसियन होस्ट मैनेजमेंट एंड एजुकेशन कंपनी (Ocean host managment and education company) के माध्यम से गए थे। जंहा उनके बेटे से उनकी रोज़ाना फोन और वीडियो कॉल के माध्यम से बात होती थी, 20 जुलाई शाम 6 बजे उसके दोस्तों के द्वारा बताया कि सौरभ पानी मे गिर गया है।

वहीं, घटना के बाद से परिवार का रोरो कर बुरा हाल है, बुजुर्ग माता-पिता के बुढ़ापे का लाठी का सहारा चला गया। दुर्भाग्य इतना कि अभी तक उसकी लाश भी घर वालों को नसीब नही हो सकी। सरकारी लचर व्यवस्था के कारण नतीजे ढाक के तीन पात साबित हो रहे हैं।

सौरभ की मम्मी ने कम्पनी पर हत्या का आरोप लगाया
सौरभ की मम्मी ने शिप कंपनी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसे तैरना नहीं आता था, उसका काम इंजन रूम के अंदर था, ऐसे में वह कैसे डक तक पहुँचा और जब गिरा तो क्या कोई वहां नहीं था जो बचा सके? विनीता पांडेय ने शिप कंपनी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मेरे बेटे की सुनियोजित ढंग से हत्या की गई है, उसको लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी नहीं दिया गया था, हम लोगों को समय पर कोई सूचना भी नहीं दी गई। फिलहाल वहीं, इस मामले पर जब हमारी टीम ने जहाजरानी मंत्रालय से संपर्क करने की कोशिश की तो संपर्क नहीं हो सका।

रिपोर्ट – रोहित रमवापुरी