Friday , 29 March 2024

कमरा नंबर दो की लड़कियां- मीरा मिश्रा

एनटी न्यूज / पब्लिक ब्लॉग

आज हाॅस्टल के कमरा नं 2 से फ्रेशर्स की ऊँची आवाज़ें आ रही थीं। कमरा तो भीतर से बंद था परन्तु बाहर बरामदे के दूसरे छोर पर भी अन्दर की आवाज़ें साफ़ साफ़ सुनी जा सकती थीं। सुनीता अपनी कड़कदार आवाज़ में सीनियर्स के ख़िलाफ़ आग उगल रही थी। सदा शांत रहने वाली उर्मिला भी बीच बीच में पाखी मजूमदार का नाम लेकर ज़ोर ज़ोर से चीख़ रही थी।

आख़िर ये होती कौन हैं जो बाथरूम में अपना ताला लगा देती हैं। एक वही तो सबसे साफ़ सुथरा ढंग का बाथरूम है़” सुनीता गरज रही थी। अरे ज़रा धीरे बोलो। कहीं किसी सीनियर ने सुन लिया तो ख़ैर नहीं। रैगिंग में हमारी अलग से क्लास लेने लग जायेंगी ।निशी सुनीता को शांत करने की कोशिश करने लगी।

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क्रोध से उर्मिला का चेहरा तमतमा रहा था। वह सुनीता के बरसते शब्दों के बीच हाँ हूं करती कमरे का चक्कर काटने लगी। आज तो हद ही हो गयी थी ।सुनीता जब नहाने के लिए बाथरूम के गलियारे में घुसी तो सभी स्नानघरभरे हुए थे। एक में बाहर से बड़ा सा ताला जड़ा हुआ था आज उसे पहले ही बहुत देर हो चुकी थी। वह B.Sc. पार्ट वन की छात्रा थी इसलिए म्योर कॉलेज जाने के लिए उसको छात्रावास से आधा घंटा पहले ही निकलना पड़ता था।

आज बाथरूम में लटकता ताला उसे बेहद खटक रहा था। पाखी मजूमदार का यह रोज़ का सिलसिला था।वो नहाने के बाद अपना साबुन शैम्पू,तौलिया बाल्टी अंदर रखकर बाथरूम में बड़ा सा ताला जड़ देती थीं।चूँकि वह उस ब्लाॅक की सबसे सीनियर छात्रा थीं इसलिए खुलेआम कोई उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था ।शायद इसीलिए उन्होंने स्पेशल प्रीविलेज ले रखा था।

बस अब बहुत हो गया अब तो इसे सबक़ सिखाना ही पड़ेगा,सुनीता क्रोध से तमतमाती दाँत भींचती हुई बाथरूम के गलियारे से बाहर निकली। सचमुच इन्होंने तो हद ही कर दी है।एक तो हमलोग इनकी रैगिंग से परेशान हैं दूसरे ये पूरे हाॅस्टल को अपनी जागीर समझती हैं।आज तो मुश्रान सर की क्लास है वो तो देर से जाने पर हमें क्लास में घुसने भी नहीं देंगे।निशि रुआंसी सूरत बनाए लगातार बोलती जा रही थी।

उर्मिला निशी और सुनीता के तीखे तेवर और रौद्र रूप को देखकर थोड़ा सहम गयी।वह चुपचाप मेस जाने की तैयारी करते हुए मन ही मन कोई योजना बनाने लगी।गरम माहौल को नरम करना उसे अच्छी तरह आता था।तीनों लड़कियों में वह सबसे शांत स्वभाव की थी।हालाँकि पाखी की करतूत पर आज उसे भी ग़ुस्सा आ रहा था।

सुनीता प्लीज़ अब अपना मूड मत ख़राब करो।कॉलेज से लौटकर नहा लेना।चलो जल्दी खाना खालो। आज भी कल की तरह लेट हुई तो फिर सर की डाँट पड़ेगी। उर्मिला अपने क्रोध पर क़ाबू रखते हुए माहौल को हल्का करने की भरसक कोशिश करने लगी।

आज हमलोगों को कुछ न कुछ करना होगा
तीनों के मुँह से लगभग एक साथ यह वाक्य निकला। सुनीता तमतमाया चेहरा लिए जल्दी से तैयार होकर मेस की ओर चल पड़ी।निशी और उर्मिला भी अपना प्लेट गिलास लिए निःशब्द साथ चल दीं।निशी और सुनीता विज्ञान की छात्रा थीं। उन्हें म्योर कालेज जाने के लिए रिक्शा पकड़ना पड़ता था।
उर्मिला और सुनीता दोनों एक ही शहर से थी ।वे बचपन से ही पक्की सहेलियाँ थीं।

संयोग से विश्वविद्यालय में दाख़िला लेने के बाद छात्रावास में कमरा भी एक साथ मिल गया था।निशी हाॅस्टल में सबसे बाद में आयी थी।उसे भी उर्मिला और सुनीता के साथ फ़र्स्ट ब्लाक का कमरा नं दो एलाॅट हुआ था। दो अजनबी लड़कियों के साथ एक छोटा कमरा शेयर करने में पहले कुछ दिन तो उसे बहुत अटपटा लगा परंतु जल्द ही वह दोनों से अच्छी तरह घुलमिल गयी।

बाद में तीनों पक्की सहेलियाँ बन गयीं।उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय का बहुत नाम था।उसे पूर्व का आक्सफोर्ड कहा जाता था।पूर्वांचल के शहरी और ग्रामीण इलाक़ों के पढ़ाकू बच्चे मन में आईएएस,पीसीएस बनने का सपना सँजोए इस विश्वविद्यालय में दाख़िला लेते थे। पहली बार विश्वविद्यालय आने वाले छात्र छात्राएँ अपनी वेशभूषा एवं बोलचाल से साफ़ साफ़ पहचाने जा सकते थे कि वो ग्रामीण इलाक़े के हैं अथवा शहरी।उन दिनों हिप्पीकट बालों एवम् चुस्त शर्टएवम् चौड़ी मोहरी वाले बेलबाटम का फ़ैशन था जो लड़कियाँ भी पहनती थीं।

नया सेशन शुरू होते ही छात्रावासों में रौनक़ बढ़ जाती थी।दूरदराज़ के गाँव -क़स्बों से आने वाली लड़कियाँ अपने लिबास और हावभाव से शहरी लड़कियों से कुछ अलग दिखती थीं। कइयों ने पहली बार फ़ैशनेबल पोशाक पहना था जो उनकी सहमी सिकुड़ी मुद्रा से प्रत्यक्ष पता चल जाता था।अंग्रेज़ी स्कूलों में पढ़ी लड़कियाँ छद्म कुलीनता का आवरण ओढ़े इन लड़कियों से अलग अपना ग्रुप बना लेती थीं परंतु एक साथ रैगिंग होने के कारण सब एक दूसरे से जुड़ा महसूस करतीं।सीनियर्स के लिए तो सब फ्रेशर्स ही थीं।निशी के वस्त्र विन्यास का अंदाज कुछ अलग था।

वह लंबे टेरीकाट के घुटनों तक के कुर्ते के साथ टेरीकाट का पैंटपहनकर गले में दुपट्टा डालकर बाहर निकलती थी।तो सुनीता चुस्त शर्ट और बेलबाटम पहनकर शहरी स्मार्ट लड़कियों की तरह कॉलेज का रुख़ करती।उर्मिला दोनों से जुदा थी। वह अक्सर सलवार कुर्ते में ही दिखती थी परंतु उसके कपड़ों के चयन से सादगी और सौम्यता छलकती रहती थी जो उसके शांत सुंदर व्यक्तित्व को और आकर्षक बना देती थी।

रोज़ की तरह आज भी शाम की चाय के वक़्त मेस के सामने सड़क पर फ्रेशर्स की क्लास लग चुकी थी।सीनियर्स सीढ़ियों पर चाय की चुस्कियों के साथ नाश्ता करते हुए रैगिंग का आनंद ले रही थींऔर फ्रेशर्स सिर में मन भर तेल थोपकर ,लाल रिबन से कस कर दो चुटिया बनाए ,मुँह लटकाए सड़क पर कतारबद्ध बैठ चुकी थीं। सुनीता को रैगिंग में प्राय बहुत मज़ा आता था परंतु आज उसका मूड ऑफ था।

सुबह का ग़ुस्सा अब भी उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था।यूँ तो उस साल एमरजेंसी लगने के कारण रैगिंग बैन कर दिया गया था परंतु लड़कियों के हाॅस्टल में उसका कोई ख़ास असर नहीं था।हाँ अब रैगिंग का समय नियत कर दिया गया था।सीनियर्स देर रात तक अपने कमरे में किसी की रैगिंग नहीं कर सकती थीं।इसलिए शाम को नाश्ते के वक़्त जब लड़कियां आराम एवम् मस्ती के मूड में होती थी तब फ्रेशर्स की रैगिंग की स्पेशल क्लास लगती।

रैगिंग में बारी बारी से हर लड़की को कुछ न कुछ करना होता था।फ्रेशर्स सीनियर्स को झुक कर फ़र्शी लगाकर आदाब बजा लाती थीं और उनकी ऊल जुलूल फर्माइशों को पूरा कर उनका मनोरंजन करती थीं।

आज सुनीता की क्रोधित नज़रें सीनियर्स में से किसी एक को तलाश रही थीं।अचानक चाय की चुस्कियाँ लेतीपाखी मजूमदार से उसकी नज़रें टकरायीं।फिर क्या था।क्रोध और घृणा से उसकी मुट्ठियां भिंच गयींं। उर्मिला ने मौक़े की नज़ाकत देख हौले से सुनीता का हाथ दबा दिया।सुनीता रैगिंग ख़त्म होते ही पाखी को सबक़ सिखाने का निर्णय ले चुकी थी।

सबक़ कैसे सिखाया जाय इस पर उसके मन में लगातार मंथन चल रहा था।आज कुसुम और रीना ने अपने सर की बहुत जीवंत मिमिक्री की थी जिसपर सभी लड़कियाँ हँसते हँसते लोटपोट हो रही थीं परंतु सुनीता ने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं था। आज कमरा नं दो की फ्रेशर्स किसी दूसरी दुनियाँ में विचर रही थीं।सभी गंभीर मुद्रा बनाए उबाऊ रैगिंग के ख़त्म होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थीं।

रात को दस बजे तक मेस बंद हो जाता था। इसके बाद लगभग सभी लड़कियों के कमरे के दरवाज़े भी बंद हो जाते थे। सुबह अ़गले दिन भी क्लास थी इसलिए ग्यारह बजते बजते सबके। कमरों की लाइट भी ऑफ हो चुकी थी। कमरा नंबर 2 की बत्ती प्राय: दस बजे तक ऑफ हो जाती थी परंतु आज रात के दो बजे तक कमरा रौशन था। तीनों सहेलियों ने आज खाना भी कमरे में ही खाया था। रैगिंग से लौटने के बाद से ही तीनों में पाखी को सबक़ सिखाने की योजना पर गहराई से विमर्श चल रहा था।

हमलोगों को जया दी से पाखी की शिकायत करनी चाहिए..निशि ने धीरे से सुनीता के सामने अपनी बात रखी। अरे नहीं हमलोग तो अभी नये आये हैं।पाखी तो तीन साल से हाॅस्टल में रह रही हैं। जया दी नाराज़ हो जाएँगी और हमारी शिकायत की ख़बर सभी सीनियर्स तक पहुँच जाएगी।फिर हमारी कैसी रैगिंग होगी तुमलोग ख़ुद ही सोच लो।…..उर्मिला इस योजना से सहमत नहीं थी।

हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि पाखीदी अपनी यह आदत भी छोड़ दें और हमारे काम का किसी को कुछ पता भी नहीं चल पाए।…सुनीता ने अपनी ख़ामोशी तोड़ते हुए यह राय ज़ाहिर की। सभी उससे सहमत थे परंतु क्या किया जाय किसी को सूझ नहीं रहा था।

…चलो थोड़ा बाहर टहलते हैं…निशि ने कहा

अरे नहीं सामने दो कमरों में अब भी लाइट जल रही है। बाहर घूमता देखकर कहीं कोई सीनियर अपने कमरे में न बुला ले।

….तो चलो पीछे आँगन की ओर चलते हैं।..उर्मिला बोली।

फ़र्स्ट ब्लाक में पीछे एक छोटा कच्चा आँगन था जिसको माली ने कोड़ाई कर फूल लगाने के लिए एक दिन पहले ही तैयार किया था।उस आँगन में रसोईघर काएक दरवाज़ा भी खुलता था जो रात दस बजे तक बंद हो जाता था।इस आँगन में लोगों की नज़रें बचाकर रात को आराम से टहला जा सकता था।

अचानक निशि के दिमाग़ में एक ख़याल आया।…अभी आती हूँ.. कहकर वह बाथरूम की ओर लपकी। फ़र्स्ट ब्लाक के कोने में एक लाइन से कई स्नानकर व शौचालय बने हुए थे जो ऊपर से खुले हुए थे। सभी के दरवाज़े एक गलियारे में खुलते थे। निशि बाथरूम का मुआयना कर चहकते हुए दोनों के पास पहुँची।
क्या हुआ ऐसे भागते हुए क्यों आ रही हो।कोई साँप बिच्छू देख लिया क्या। ?…सुनीता बोली
..अरे नहीं तुम लोग चलो तो ,मेरे मन में एक विचार आया है।पहले बाथरूम की तरफ़ चलो तब बताऊँगी।
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उस समय रात के ढाई बज रहे थे। पूरे हाॅस्टल में रात का सन्नाटा पसरा हुआ था। पास की झाड़ियों से झींगुरों की कर्कश आवाज़ आ रही थी जो सन्नाटे को और डरावना बना रही थी। मुख्य द्वार के अलावा पूरे हाॅस्टल में कहीं बत्ती नहीं जल रही थी।

तीनों बाथरूम के गलियारे में पहुँच गयीं।निशि लपककर एक स्नानकर के नल के सहारे दो बाथरूमों के बीच की दीवार पर चढ़ गयी,वह तीनों में सबसे लंबी चुस्त और छरहरी थी।

…..तुम दोनों ध्यान से सुनो।जल्दी से आँगन की क्यारियों से अपनी बाल्टी में मिट्टी भरकर लाओ।मैं उसे ऊपर से पाखी की बाल्टी में डालकर उनके बाथरूम का दरवाज़ा अंदर से लाॅक कर दूँगी।फिर देखना सुबह कितना मज़ा आएगा।….नि शि फुसफुसाते हुए ऊपर से बोली।

सुनीता की आँखें एकाएक चमकने लगीं।उसे यह योजना बहुत पसंद आयी।

दोनों तुरंत बाल्टी ले आयीं और आँगन की भुरभुरी मिट्टी उसमें भरने लगीं। आधी बाल्टी मिट्टी से ही बाल्टी बहुत भारी हो गयी।दोनों ने किसी तरह बाल्टी निशि को पकड़ा दी। उसने दीवाल के ऊपर से ही पाखी की भरी बाल्टी में मिट्टी उँड़ेल दी। फिर नल का सहारा लेकर वह बाथरूम के अंदर उतर गयी ।अंदर साफ़ सुथरे बाथरूम में मिट्टी बिखर गयी थी उसने पाखी का तौलिया साबुन शैम्पू सब कुछ बाल्टी में डाल दिया।

पूरे बाथरूम में कीचड़ मिट्टी फैल गयी।उसने अंदर की कुंडी लगा दी और नल के सहारे दूसरे बाथरूम के रास्ते बाहर आ गयी। दूसरे बाथरूम में अपने कीचड़ से सने पैरों के निशान भी पानी से साफ़ कर लिया।बाहर से सारे सबूतों को साफ़ कर पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद तीनों कमरे में लौट आयीं।कमरे का दरवाज़ा बन्द करते ही तीनों ख़ुशी के मारे पागलों की तरह हँसते हुए उछलने लगीं।

अब तो तुम्हें चैन मिल गया…उर्मिला ने मुस्कुराते हुए सुनीता से कहा
मज़ा आ गया।निशि तुम्हें यह आइडिया आया कहाँ से.. सुनीता चेहरे पर विजयी मुस्कान लिए दोनों को उछलते हुए दे ख रही थी।जवानी की दहलीज़ पर खड़ा बचपन अब तक हिलोरें मार रहा था।जो सुकून शरारतें करने पर बचपन में मिलता था वही आज दोस्तों के बीच इतने दिनों बाद मिल रहा था।तीनों का हंस हंस कर बुरा हाल हो रहा था।

…हाँ अब तो कल का इंतज़ार है। देखना कल कितना मज़ा आएगा।
तीनों कल की प्रतीक्षा में जल्द ही अपने अपने बिस्तरों में दुबक गईं और खर्राटे लेने लगीं।

रात को देर और सुकून से सोने के कारण तीनों देर तक सोती रहीं।कमरे के बाहर कई लड़कियों की घबराई आवाज़ सुनकर अचानक उर्मिला उठ बैठी उसने निशि और सुनीता को झकझोरकर जगाया।उर्मिला ने धीरे से दरवाज़ा खोला।

…क्या हुआ ,ये लोग इतना चिल्ला क्यों रही हैं। चेहरे पर मासूमियत का भाव लिए उसने वीना से पूछा जो कमरा नं एक में रहती थी।
….अरे तुम्हें नहीं मालूम ,रात में इस ब्लाक में भूत आया था।पाखी दी ने जिस बाथरूम में ताला लगाया था वह अंदर से बंद है खुल नहीं रहा है।..वीना बोली
इस ब्लाक में पन्द्रह साल पहले एक लड़की ने सुसाइड किया था।

उसकी आत्मा इसमें घूमती रहती है। …उधर से मंजू बोली जिसकी बड़ी बहन भी उस हाॅस्टल में रह चुकी थी।वह कई सीनियर्स से अच्छी तरह परिचित थी।उर्मिला चेहरे पर घबराहट का भाव लिए मन ही मन मुस्कुराने लगी।नि शी और उर्मिला भी तब तक बाहर आ गयी थीं।

उधर पाखी को काटो तो ख़ून नहीं।अपना घबराया चेहरा लेकर कभी वह बाथरूम के दरवाज़े पर जातीं तो कभी अपने कमरे में।सबकी बातें सुनकर डर के मारे उनके हाथ पैर काँप रहे थे।यह ख़बर पूरे हाॅस्टल मेंजंगल के आग की तरह फैल गयी। सभी लड़कियाँ दरवाज़ा खोलने के लिए अपनी ताक़त आज़मा चुकी थीं परंतु वह टस से मस नहीं हो रहा था।होता भी कैसे।

अंदर से कुंडी जो लगी थी।निशी, उर्मिला और सुनीता भी चेहरे पर डर का भाव लिए भूत की बात को सच मानने का दिखावा करने लगीं।पाखी का रुआँसा चेहरा देखकर सुनीता को बड़ासुकून मिल रहा था। घंटे भर तक यह हंगामा चलता रहा। निशी बहुत देर से यह सब देख रही थी।अब उससे रहा नहीं जा रहा था।
पाखीदी उदास मत होइये।चलिए एक बार फिर कोशिश करते हैं। शायद दरवाज़ा खुल जाय।…निशी बोली
पाखी को हिम्मत बंधी।बाथरूम में पहुँचते ही निशि ने दरवाज़े पर दो तीन लात जमाया।फिर अग़ल बग़ल झाँकते हुए अपनी लंबी टांगों से ऊपर चढ़ने की कोशिश करने लगी। एक दो बार नाकामयाब होने का दिखावा करने के बाद वह फुर्ती से नल के सहारे दीवाल पर चढ़ गयी।

…अरे बाप रे लगता है भूतों ने यहाँ जमकर धमाचौकड़ी मचाया हैं।
निशी हँसते हुए मौक़े का मज़ा लेने लगी।वह कूदकर अंदर पहुँच गयी और कमरे की सिटकिनी खोलकर बाहर निकल आयी,।
ओ माई गाड़ यह बाल्टी में इतनी मिट्टी कैसे आई।व्हेयर इज माई टावेल ,मेरा शाबुन शैम्पू कहाँ गया…पाखी अपने विस्फारित नेत्रों से साफ़ सुथरे महकते दमकते प्यारे बाथरूम का यह हुलिया देखकर अचंभित थी।उनकी नयी इतनी बड़ी बाल्टी में ऊपर तक इतनी अधिक मिट्टी…उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

पाखी दी लगता है किसी ने शैतानी की है….निशी अपनी हँसी दबाए पाखी से सहानुभूति जताने की कोशिश करने लगी।
यह भी तो हो सकता है किसीने ऊपर चढ़कर आपकी बाल्टी में मिट्टी डाल दिया हो…
नहीं ऐसा नहीं हो सकता। ऊपर चढ़कर कोई इतनी मिट्टी कैसे डाल सकता है। यह काम भूत के अलावा कोई कर ही नहीं सकतालड़कियां तो कभी नहीं।
बाथरूम का हुलिया देखकर पाखी को भूत की करतूत का पक्का विश्वास हो चला था।

दरअसल बाल्टी में मिट्टी फूलकर ऊपर आ गयी थी।बाल्टी काफ़ी बड़ी थी इसलिए पाखी को विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई इतनी बड़ी बाल्टी को मिट्टी से कैसे भर सकता है।
निशि,उर्मिला और सुनीता फिर अपने कमरे में आकर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगीं।हाॅस्टल की सभी लड़कियों को फ़र्स्ट ब्लाक में भूत आने का पक्का यक़ीन हो चला था।

उस ब्लाक की लड़कियाँ भी डर गयी थीं।सभी अपनी बाल्टी उठाये दूसरे ब्लाक के बाथरूम की ओर जा रही थीं। पाखी तो इस घटना से ऐसी भयभीत हुईं कि उन्होंने उसी क्षण ब्लाक छोड़ने का फ़ैसला कर लिया,। वह तुरंत ज़या दी के पास अपना कमरा बदलने की फ़रियाद लेकर पहुँच गयीं।

……जया दी प्लीज चेंज माई रूम ।मैं फ़र्स्ट ब्लाक में नहीं रहूँगी।…काँपती आवाज़ में अपनी बात पूरी करते करते पाखी रो पड़ीं। उनका शरीर अब भी थरथर काँप रहा था।
जया दी भी इस घटना से बड़ी अचंभित थीं।उन्होंने लड़कियों की शैतानियों के एक से बढ़कर एक क़िस्से देख सुन रखे थे परंतु कोई ऐसा भी कर सकता है यह स्वीकारने में उन्हें कठिनाई हो रही थी। उन्होंने पाखी को तुरंत चौथे ब्लाक का एक कमरा एलाॅट कर दिया।इसके बाद फ़ौरन अपनी कुछ चहेतियों (जिन्हें लड़कियाँ जया दी की जासूस कह कर चुस्की लेती थीं )को अपने पास बुलाया।

…भई यह मैं क्या सुन रही हूँ।तुमलोग तुरंत पता लगाकर बताओ यह किसका काम है।मैं भूत प्रेत में विश्वास नहीं करती।यह ज़रूर किसी फ्रेशर का काम है।जया दी की अनुभवी पारखी नज़रें कभी धोखा नहीं खा सकती थीं।

उनका ख़ुफ़िया विभाग तुरंत चौकस हो गयापरंतु सालभर बीतने के बाद भी उसे कोई ठोस सबूत हाथ नहीं लगा।
बहुत दिनों बाद सुनीता ने अपनी सहेलियों को इस घटना के बारे में बताया। तब तक मामला ठंडा पड़ चुका था।हाँ पाखी को फ़र्स्ट ब्लाक में जाते फिर किसी ने नहीं देखा।फोर्थ ब्लाक के बाथरूम में दुबारा ताला जड़ने की उनकी हिम्मत भी नहीं हुई।

मीरा मिश्रा
(इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिवार के फेसबुक से )

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