Friday , 19 April 2024

मोदी हटेंगे ? हटाने वाला चाहिए!

एनटी न्यूज डेस्क

सोलहवीं लोकसभा की आखिरी बैठक के दिन (13 फरवरी 2019) सदन के भीतर और बाहर ढोंग और व्यंग्य का पुट ज्यादा दिखा. सर्वोच्च पंचायत में सामंजस्य नदारद था. अतः वोटरों को हर प्रत्याशी से पुनर्निर्वाचन के पूर्व जानना होगा कि किसने काम किया या हराम किया. नरेंद्र मोदी से नफरत वाजिब है! आखिर जिन्दा कौमें कोई पाँच साल प्रतीक्षा नहीं करतीं. मगर क्लीव विपक्ष प्रधानमन्त्री का बाल भी बाँका नहीं कर पाया. प्रमाण प्रचुरता में मिलते हैं.

जैसे जंतर-मंतर पर “लोकतंत्र बचाओ” के लिये बैठे कम्युनिस्ट नेता (सीताराम येचुरी और डी. राजा) ममता बनर्जी को दूर से आते देखकर खिसक गये. मोदी से ज्यादा घिनौनी ममता लगीं. उचित भी है. चौंतीस वर्ष का माकपा का राज चूर कर दिया. मोदी-विरोध गौण हो गया. आम आदमी के नायक अरविन्द केजरीवाल की सभा में कांग्रेसी आनंद शर्मा की बेरुखी झलकती रही. अंततः तय यही हुआ कि दिल्ली और बंगाल छोड़कर अन्य प्रदेशों में मोदी-विरोधी मुहिम साथ चलेगी. बंगलूर में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह पर मायावती और सोनिया का आलिंगन फबता रहा. पर उत्तर प्रदेश में दोनों पार्टियाँ गोमती के दो किनारों जैसी हो गई हैं. आंध्र भवन में चंद्रबाबू नायडू के अनशन पर सभी जुटे. आधी इमारत (तेलंगाना भवन) में रह रहे के0 चन्द्रशेखर राव कन्नी काट गये. हालांकि मोदी को अपदस्थ करने में दोनों तेलुगु-भाषी ओवरटाइम करने में लगे हैं.

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मगर यह आश्चर्यजनक मंजर रहा (मोदी हेतु हर्षदायी) जब लोकसभा में अनियंत्रित चिट फण्ड पर काबू के लिये वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने विधेयक पेश किया. तब “नरेंद्र मोदी, हाय हाय” का संगीत थम गया. पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन घोष ने तृणमूल कांग्रेस सदस्यों द्वारा विधेयक पर आपत्ति पर चीख लगाई कि “बांग्ला को लूटकर ये ममता के लोग अब देश लूटने आये हैं.” कांग्रेसी सदस्यों ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का स्वर बुलंद किया. माकपा और तृणमूल सांसद तो सदन में भिड़ गये. ये वही हैं जो मोदी को हटाकर, देश चलाएंगे. शारदा चिट फण्ड घोटाला में अपने पार्टीजनों के खातिर ममता बनर्जी धर्मतल्ला पुलिस स्टेशन पर धरने पर बैठ चुकी हैं. अर्थात् यह अब स्पष्ट हो गया कि सत्रहवीं लोकसभा से नरेंद्र मोदी को दूर रखना है तो इन सबको निजी लालच का उत्सर्ग करना पड़ेगा.

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ये मोदी-विरोधी कल तक राफेल का कलंक मोदी पर थोप चुके थे. मगर आज बीकानेर और गुरुग्राम में भूमि पर अवैध कब्जा तथा लन्दन और दुबई में विशाल भवन जामाता द्वारा हथियाना कैसे झुठलायेंगे? जवाब तो पूर्वी उत्तर प्रदेश देगा ही. बाकी जो कसर बचेगी वह इटली की अगस्ता वेस्टलैंड के हेलिकॉप्टर के छत्तीस हजार करोड़ के घोटाले से पूरा हो जायेगा.

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याद कीजिये 1977 में महाबलशाली इंदिरा गांधी को हटाने के लिये जामा मस्जिद के इमाम बुखारी बलरामपुर में संघी नेता नानाजी देशमुख के लिये वोट माँगने (1977) गये थे. इमर्जेंसी के पूर्व अटल बिहारी वाजपेयी ने अहमदाबाद में वटवृक्ष (सोशलिस्ट पार्टी) के लिये वोट माँगा था और जार्ज फर्नान्डिस ने दीपक (भारतीय जनसंघ) के लिये. तब गुजरात विधान सभा चुनाव (1975) हो रहा था. जनता मोर्चा के झण्डे टेल सारे गैरकांग्रेसी एक मंच पर थे. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के रूप में इनको सारथी मिला था, “इंदिरा हराओ” वाले महासंग्राम में. रायबरेली के वोटरों ने दो साल बाद धरती को भार मुक्त कर दिया था. इंदिरा गांधी की शिकस्त हो गई थी. आज सारथी के अभाव में ये मोदी-विरोधी लोग कौरव सेना सरीखे हैं. इन्द्रप्रस्थ तो क्या, सोनीपत भी इन्हें मिल पायेगा?

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(के विक्रम राव का लेख)

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